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करनाल सिख महासम्मेलन में सिरसा से बड़ी संख्या में जाएगी सिख संगत: लखविंदर सिंह सिरसा

सिरसा। हरियाणा सिख एकता दल की और लखविंदर सिंह सिरसा ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि करनाल में 8 सितंबर को आयोजित किए जा रहे हरियाणा सिख सम्मेलन को प्रदेश भर में बड़ी संख्या में सिख संगत का सहयोग मिल रहा है और लाखों की तादाद में सिख संगत करनाल में एकत्रित होकर हरियाणा में सिख समाज के वजूद को कायम करने का आगाज करेंगे। प्रेस वार्ता में मौजूद लखविंदर सिंह, इकबाल सिंह, कश्मीर सिंह, तलविंदर सिंह ने बताया कि इस सम्मेलन को लेकर अब तक प्रदेश के अलग अलग जिलों में 200 से अधिक मीटिंग हो चुकी हैं व प्रदेश के सिख समाज में इस सम्मेलन को लेकर भारी उत्साह है।

हरियाणा के सिख समाज की और से अब तक इस सम्मेलन में श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह, तख्त दमदमा साहेब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह, तख्त के सगड़ साहेब के जत्थेदार ज्ञानी सुल्तान सिंह, तख्त श्री पटना साहिब कि जत्थेदार सिंह सब ज्ञानी बलदेव सिंह व तख्त श्री हजूर साहिब के जत्थेदार सिंह साहब संत बाबा बलवंत सिंह पहुंच रहे हैं, ताकि सिख धर्म के पांच सर्वोच्च तख्त साहिब के जत्थेदारों का मार्गदर्शन हरियाणा के सिख समाज की एकता के लिए मिल सके। इसके अतिरिक्त प्रदेश के प्रमुख संत महापुरुषों को भी सम्मान सहित इस आयोजन में बुलाया जा रहा है। वहीं सिख धर्म के प्रसिद्ध ढाडी भाई गुरप्रीत सिंह लांडरा वाले व प्रसिद्ध हिस्टोरियन व वक्ता डा. सुखपप्रीत सिंह उधोके भी विशेष रूप से आयोजन में शामिल होकर हरियाणा प्रदेश जो 1966 से पहले पंजाब का ही हिस्सा था, में बिखरे सिख इतिहास की कडिय़ों को जोड़ेंगे।

8 सितंबर को हरियाणा सिख सम्मेलन में बड़ी संख्या में पूरे प्रदेश भर का सिख समाज इक_ा होगा व लंबे समय से लंबित अपनी पंथक व प्रदेश से संबंधित हकों की पूर्ति के लिए रणनीति बनाएगा। उन्होंने बताया कि जहां दुनिया भर के सिख समाज की तरह हरियाणा के सिख चाहते हैं कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं को रोकने के लिए गैर जमानती धाराओं में सख्त कानून बने, वहीं साथ ही सिख समाज के मानव अधिकारों की रक्षा करते हुए सजा पूरी कर चुके बंदी सिंघों की रिहाई भी प्रमुख मांग रहेगी। उल्लेखनीय है कि 1966 में हरियाणा बनने के बाद पहली बार प्रदेश के सिख समाज ने एक जुट होकर अपनी हस्ती कायम करने की पहल की है।

इन मांगों को लेकर हरियाणा सिख एकता दल का गठन किया है:
हरियाणा में 15-20 विधान सभा सीटों में सिख बड़ी गिनती में हैं, आने वाले विधान सभा चुनावों में यहां से सिख उम्मीदवार उतारे जाएं। अगर कोई सीट रिजर्व हो तो ऐसी सीट पर रिजर्व सिख जैसे मजहबी, रामदासिया, शिक्लीघर, राय सिख आदि को टिकट दी जाये। आगामी लोकसभा में सिख समुदाय के दो प्रतिनिधियों को टिकट मिले व राज्य सभा में भी हरियाणा के सिख समाज को प्रतिनिधित्व दिया जाये।

हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की वोटें अन्य चुनावों की वोटों की तरह बीएलओ नियुक्त कर घर घर जाकर बनाई जाए व गुरुद्वारा कमेटी के चुनाव तुरंत करवाये जाएं। पंजाबी को दूसरी भाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में पंजाबी के टीचर नहीं हैं। जिन सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में पंजाबी टीचर नहीं हैं, वहां पोस्ट दी जाये। हर सरकारी स्कूल में पंजाबी अध्यापक की भर्ती की जाये व जिन प्राइवेट स्कूलों में 10 या अधिक विद्यार्थी पंजाबी पढऩा चाहते हैं, वहां पंजाबी अध्यापक की नियुक्ति की जाये। पंजाबी साहित्य अकादमी को पहले की तरह स्वतंत्र प्रभार दिया जाए, ताकि पंजाबी भाषा के विकास के कार्य हो सकें। सोशल मीडिया पर सिख धर्म, गुरु साहेबान, सिख कौम के बारे गलत प्रचार करने व सिखों को टारगेट बनाकर व गलत शब्द इस्तेमाल कर हमला करने पर सख्त कारवाई करने के लिए हर ज़िले में एसआईटी का गठन किया जाये। परीक्षाओं में अमृतधारी बच्चों के ककार न उतरवाने के लिये स्पष्ट निर्देश दिये जायें व ऐसा करने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कानूनी व विभागीय कारवाई की जाये।

राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाये। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में हरियाणा के सिखों को प्रतिनिधित्वि दिया जाये व साथ ही राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग व राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग में भी इस श्रेणी से संबंधित सिखों को शामिल किया जाये। सिख आबादी वाले सभी जिलों में सिख कम्युनिटी सेंटर बनाने के लिए सरकारी स्थान व अन्य जातियों को दी गई ग्रांट की तर्ज पर ग्रांट दी जाये। हरियाणा सिख एकता दल की और से आज प्रदेश की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के नाम खुला पत्र जारी किया, जिसमें उपरोक्त मांगों के संबंध में अपने स्टैंड को स्पष्ट करने व इन्हें अपने मैनिफेस्टो में शामिल करने की मांग की गई है।

अगर प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों ने इन मांगों की ओर ध्यान न दिया तो प्रदेश के सिख संघर्ष के राह पर चलने को मजबूर होंगे। हरियाणा सिख एकता दल में शामिल सिख समाज के प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि 1966 में हरियाणा बनने से लेकर आज तक हरियाणा के सिख समाज को उनका हक नहीं मिला। उन्हें छोटे-छोटे मसलों में उलझा कर रखा गया व वोटों की राजनीति के चलते उन्हें बांटने के पूरे प्रयास किए गए, लेकिन अब प्रदेश का सिख समाज जागरूक हो रहा है व अपनी मेम्बरी व प्रधानगी अथवा अन्य व्यक्तिगत लालचों के लिए उनके हितों का सौदा करने वाले लीडरों के कहने पर किसी पार्टी का साथ नहीं देगा, बल्कि पूरे समाज के हित के बारे में बात करेगा। हरियाणा सिख एकता दल की कमेटी में शामिल कोई भी सदस्य स्वयं कोई चुनाव नहीं लड़ेगा व न ही कोई व्यक्तिगत लाभ लेगा।

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